ये दर्द है गरीबी का। ये दर्द है मजबूरी का। ये दर्द का ऐसा दृश्य था कि किसी से देखा नहीं जा रहा था। दुनिया से रुखसत होने के बाद एक पिता को चार कंधों का सहारा मुश्किल हो गया। ऐसे में पांच बेटियों के कांधों पर घर से श्मशान तक के लिए रवाना हुआ।
ये दर्द है गरीबी का। ये दर्द है मजबूरी का। ये दर्द का ऐसा दृश्य था कि किसी से देखा नहीं जा रहा था। दुनिया से रुखसत होने के बाद एक पिता को चार कंधों का सहारा मुश्किल हो गया। ऐसे में पांच बेटियों के कांधों पर घर से श्मशान तक के लिए रवाना हुआ।